अध्यात्म

क्योँ यज्ञ के समय स्वाहा कहा जाता है, क्या है इसके पीछे कारण

Written by hindicharcha

नमस्कार दोस्तों हिंदी चर्चा में आपका स्वागत है, आज की अध्यात्म चर्चा में हम आपको बताएँगे की क्योँ यज्ञ के समय स्वाहा कहा जाता है, क्या है इसके पीछे कारण,

हिंद धर्म में सदियों से यज्ञ की परंपरा चली आ रही है। प्रचीन समय में भी जब भी कोई बड़ा अनुष्ठान या शुभ काम करना होता था तो उसमें ऋषि मुनि द्वारा महायज्ञ का आयोजन जरूर किया जाता था। और आज भी छोटी से छोटी पूजा हो या फिर बड़ा अनुष्ठान, पूजा संपन्न होने से पहले हवन अथवा यज्ञ जरूर किया जाता है।

इस हवन के दौरान ऋषि मुनियों या फिर पंडितों द्वारा स्वाहा का उच्चारण किया जाता है। जिसे आप सभी ने सुा लोग लेकिन इसके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। आखिर इसका मतलब क्या है और इसका महत्व क्या है?

ऋग्वैदिक ऋषियों ने यज्ञीय परंपरा की शरुआत की थी, इस यज्ञ के द्वारा वे देवताओं तक हविष्य पहुंचाते थे, जिसके लिए अग्नि का प्रयोग किया गया।

और अग्नि में हवि डालने के दौरान की स्वाहा शब्द का उच्चारण किया जाता था। देवताओं के आह्वान के लिए निमित्त मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा का उच्चारण कर निर्धारित हवन साम्रगी का भोग अग्नि के माध्यम से पहुंचाया जाता है।
क्या है स्वाहा का मतलब?

इस स्वाहा का अर्थ है, सही रीति से पहुंचाना परंतु क्या और किसको?

यानि आवश्यक भौगिक पदार्थ को उसके प्रिय तक। हवन अनुष्ठान की ये आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण क्रिया है। कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हविष्य का ग्रहण देवता न कर लें। किंतु देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा “स्वाहा” के माध्यम से अर्पण किया जाए।

निश्चित रूप से मंत्र विधानों की संरचना के आरंभ से ही इस तथ्य पर विचार प्रारंभ हो चुका था कि आखिर कैसे हविष्य को उनके निमित्त देव तक पहुंचाया जाए? विविध उपायों द्वारा कई कोशिशें याज्ञिक विधान को संचालित करते वक्त की गईं। आखिरकार अग्नि को माध्यम के रूप में सर्वश्रेष्ठ पाया गया तथा उपयुक्ततम शब्द के रूप में “स्वाहा” का गठन हुआ।

अग्नि और स्वाहा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। श्रीमद्भागवत तथा शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन आए हैं। इसके अलावा ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर अनेक सूक्तों की रचनाएं हुई हैं।

ये है पौराणिक मान्यताएं?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं जिनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था। अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है। ये भी एक रोचक तथ्य है कि अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से ही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है। एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए।

इसके अलावा भी एक अन्य रोचक कहानी भी स्वाहा की उत्पत्ति से जुड़ी हुई है। इस मान्यता के अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे।

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